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‘नव पिढी’

 

बिस्वासक डेग बढाबके कोसिस हरदम
छाँया सन सन्हियायल शंका
विकृति आधुनिकताके देखि
नव पिढी सम्हरत कोना बढल चिन्ता

बिस्वास अपन सशक्त संस्कार उपर
नव पिढी डगमगायत कोना
याद करैत अपन युगके
बचेलौं पुर्खा, परिवार
एवं अपन अस्तित्व जेना

पइढरहल छि नव पिढी के आँइख
माँइगरहल अछि वचन एवं बिस्वास
मुदा पापि शंका सन्हियायल रहैत अछि
छोडायब पिछा अपन कोना

सुन्दरताके परिभाषा बिगारैत नव पिढी
उघारलक अपन शरिर
जिनकर माय नै चलैछैत माथ उघारी
देखि चिन्तित , व्याकुल मन
करब कुन उपाय

बालविवाह अन्तय करी
एकहि सँग रहैत देखलौ जे बिवाह पूर्व
धिक्कारैछि एहन आधुनिकता
भरहल जानि जानि घोर भूल

सिखायब कि सिखबे करब
आगु अछि अपना सँ नव पिढी
परिस्थिति उपर अछि लाचारी
माइनक बढु ,बनलौं आब पुरान पिढी

सल्लाहके कहैत अछि, जखन गन्दा सोच
छिरियाओल मन कोना समेटब
देखके बहुत किछ बाँकी अछि
जँ धर्ति पर जिवित रहब

सोइचरहल छि,देखायब पूर्वजके आब कुन मुह
घून लागिगेल हुनकर बनायल शासनमे
जहन सम्हाइर नै सक्लौं ,अपन अछईतमे
बिकृतिके स्विकार करब कोना
आधुनिकता कहैछैथ जेकरा नव पिढी ।

रचियता : ज्योति झा

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